श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

अर्जुन उवाच

संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।

यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्िचतम्।।5.1।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।5.1।।केवल संन्यास करनेमात्रसे ही सिद्धिको प्राप्त नहीं होता है इस वचनसे ज्ञानसहित संन्यासको ही सिद्धिका साधन माना है साथ ही कर्मयोगका भी विधान किया है इसलिये ज्ञानरहित संन्यास कल्याणकर हैअथवा कर्मयोग इन दोनोंकी विशेषता जाननेकी इच्छासे अर्जुन बोला आप पहले तो शास्त्रोक्त बहुत प्रकारके अनुष्ठानरूप कर्मोंका त्याग करनेके लिये कहते हैं अर्थात् उपदेश करते हैं और फिर उनके अनुष्ठानकी अवश्यकर्तव्यतारूप योगको भी बतलाते हैं। इसलिये मुझे यह शङ्का होती है कि इनमेंसे कौनसा श्रेयस्कर है। कर्मोंका अनुष्ठान करना कल्याणकर है अथवा उनका त्याग करना जो श्रेष्ठतर हो उसीका अनुष्ठान करना चाहिये इसलिये इन कर्मसंन्यास और कर्मयोगमें जो श्रेष्ठ हो अर्थात् जिसका अनुष्ठान करनेसे आप यह मानते हैं कि मुझे कल्याणकी प्राप्ति होगी उस भलीभाँति निश्चय किये हुए एक ही अभिप्रायको अलग करके कहिये क्योंकि एक पुरुषद्वारा एक साथ दोनोंका अनुष्ठान होना असम्भव है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।5.1।। संन्यासं परित्यागं कर्मणां शास्त्रीयाणाम् अनुष्ठेयविशेषाणां शंससि प्रशंससि कथयसि इत्येतत्। पुनः योगं च तेषामेव अनुष्ठानम् अवश्यकर्तव्यंत्वं शंससि। अतः मे कतरत् श्रेयः इति संशयः किं कर्मानुष्ठानं श्रेयः किं वा तद्धानम् इति। प्रशस्यतरं च अनुष्ठेयम्। अतश्च यत् श्रेयः प्रशस्यतरम् एतयोः कर्मसंन्यासकर्मयोगयोः यदनुष्ठानात् श्रेयोऽवाप्तिः मम स्यादिति मन्यसे तत् एकम् अन्यतरत् सह एकपुरुषानुष्ठेयत्वासंभवात् मे ब्रूहि सुनिश्चितम् अभिप्रेतं तवेति।।स्वाभिप्रायम् आचक्षाणो निर्णयाय श्रीभगवानुवाच

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।5.1।। अर्जुन बोले -- हे कृष्ण ! आप कर्मोंका स्वरूपसे त्याग करनेकी और फिर कर्मयोगकी प्रशंसा करते हैं। अतः इन दोनों साधनोंमें जो एक निश्चितरूपसे कल्याणकारक हो, उसको मेरे लिये कहिये।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।5.1।। अर्जुन ने कहा हे --  कृष्ण ! आप कर्मों के संन्यास की और फिर योग (कर्म के आचरण) की प्रशंसा करते हैं। इन दोनों में एक जो निश्चय पूर्वक श्रेयस्कर है, उसको मेरे लिए कहिये।।