श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।

त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन।।4.9।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।4.9।।वह मेरा मायामय जन्म और साधुरक्षण आदि कर्म दिव्य हैं अर्थात् अलौकिक हैं यानी केवल ईश्वरशक्तिसे ही होनेवाले हैं। इस प्रकार जो तत्त्वसे यथार्थ जानता है। हे अर्जुन वह इस शरीरको छोड़कर पुनर्जन्म अर्थात् पुनः उत्पत्तिको प्राप्त नहीं होता ( बल्कि ) मेरे पास आ जाता है अर्थात् मुक्त हो जाता है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।4.9।। जन्म मायारूपं कर्म च साधूनां परित्राणादि मे मम दिव्यम् अप्राकृतम् ऐश्वरम् एवं यथोक्तं यः वेत्ति तत्त्वतः तत्त्वेन यथावत् त्यक्त्वा देहम् इमं पुनर्जन्म पुनरुत्पत्तिं न एति न प्राप्नोति। माम् एति आगच्छति सः मुच्यते हे अर्जुन।।नैष मोक्षमार्ग इदानीं प्रवृत्तः किं तर्हि पूर्वमपि

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।4.9।। हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। इस प्रकार (मेरे जन्म और कर्मको) जो मनुष्य तत्त्वसे जान लेता अर्थात् दृढ़तापूर्वक मान लेता है, वह शरीरका त्याग करके पुनर्जन्मको प्राप्त नहीं होता, प्रत्युत मुझे प्राप्त होता है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।4.9।। हे अर्जुन ! मेरा जन्म और कर्म दिव्य है,  इस प्रकार जो पुरुष तत्त्वत:  जानता है, वह शरीर को त्यागकर फिर जन्म को नहीं प्राप्त होता;  वह मुझे ही प्राप्त होता है।।