श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।

श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।6.47।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।6.47।।रुद्र आदित्य आदि देवोंके ध्यानमें लगे हुए समस्त योगियोंसे भी जो योगी श्रद्धायुक्त हुआ मुझ वासुदेवमें अच्छी प्रकार स्थित किये हुए अन्तःकरणसे मुझे ही भजता है उसे मैं युक्ततम अर्थात् अतिशय श्रेष्ठ योगी मानता हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।6.47।। योगिनामपि सर्वेषां रुद्रादित्यादिध्यानपराणां मध्ये मद्गतेन मयि वासुदेवे समाहितेन अन्तरात्मना अन्तःकरणेन श्रद्धावान् श्रद्दधानः सन् भजते सेवते यो माम् स मे मम युक्ततमः अतिशयेन युक्तः मतः अभिप्रेतः इति।।

इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपाद

शिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्येषष्ठोऽध्यायः।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।6.47।। सम्पूर्ण योगियोंमें भी जो श्रद्धावान् भक्त मुझमें तल्लीन हुए मनसे मेरा भजन करता है, वह मेरे मतमें सर्वश्रेष्ठ योगी है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।6.47।। समस्त योगियों में जो भी श्रद्धावान् योगी मुझ में युक्त हुये अन्तरात्मा से (अर्थात् एकत्व भाव से मुझे भजता है, वह मुझे युक्ततम (सर्वश्रेष्ठ) मान्य है।।