श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

प्रयाणकाले मनसाऽचलेन

भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव।

भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक्

स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम्।।8.10।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।8.10।।तथा --, ( जो योगी ) अन्त समय -- मृत्युकालमें भक्ति और योगबलसे युक्त हुआ -- अर्थात् भजनका नाम भक्ति है उससे युक्त हुआ और समाधिजनित संस्कारोंके संग्रहसे उत्पन्न हुई चित्तस्थिरताका नाम योगबल है उससे भी युक्त हुआ चञ्चलतारहित -- अचल मनसे पहले हृदयकमलमें चित्तको स्थिर करके फिर ऊपरकी ओर जानेवाली नाड़ीद्वारा चित्तकी प्रत्येक भूमिको क्रमसे जय करता हुआ भ्रुकुटिके मध्यमें प्राणोंको स्थापन करके भली प्रकार सावधान हुआ ( परमात्मस्वरूपका चिन्तन करता है ) वह ऐसा बुद्धिमान् योगी कविं पुराणम् इत्यादि लक्षणोंवाले उस दिव्य -- चेतनात्मक परम पुरुषको प्राप्त होता है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।8.10।। --,प्रयाणकाले मरणकाले मनसा अचलेन चलनवर्जितेन भक्त्या युक्तः भजनं भक्तिः तया युक्तः योगबलेन चैव योगस्य बलं योगबलं समाधिजसंस्कारप्रचयजनितचित्तस्थैर्यलक्षणं योगबलं तेन च युक्तः इत्यर्थः पूर्वं हृदयपुण्डरीके वशीकृत्य चित्तं ततः ऊर्ध्वगामिन्या नाड्या भूमिजयक्रमेण भ्रुवोः मध्ये प्राणम् आवेश्य स्थापयित्वा सम्यक् अप्रमत्तः सन् सः एवं विद्वान् योगी,कविं पुराणम् इत्यादिलक्षणं तं परं परतरं पुरुषम् उपैति प्रतिपद्यते दिव्यं द्योतनात्मकम्।।पुनरपि वक्ष्यमाणेन उपायेन प्रतिपित्सितस्य ब्रह्मणो वेदविद्वदनादिविशेषणविशेष्यस्य अभिधानं करोति भगवान् --,

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।8.10।। वह भक्तियुक्त मनुष्य अन्तसमयमें अचल मनसे और योगबलके द्वारा भृकुटीके मध्यमें प्राणोंको अच्छी तरहसे प्रविष्ट करके (शरीर छोड़नेपर) उस परम दिव्य पुरुषको ही प्राप्त होता है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।8.10।। वह (साधक) अन्तकाल में योगबल से प्राण को भ्रकुटि के मध्य सम्यक् प्रकार स्थापन करके निश्चल मन से भक्ति युक्त होकर उस परम दिव्य पुरुष को प्राप्त होता है।।