श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव

दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्।

अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा

योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्।।8.28।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।8.28।।योगका माहात्म्य सुन --, इनको जानकर अर्थात् इन सात प्रश्नोंके निर्णयद्वारा कहे हुए रहस्यको यथार्थ समझकर और उसका अनुष्ठान करके योगी पुरुष भलीभाँति पढ़े हुए वेद श्रेष्ठ गुणोंसहित सम्पादन किये हुए यज्ञ भली प्रकार किये हुए तप और यथार्थ पात्रको दिये हुए दान इन सबका शास्त्रोंने जो पुण्यफल बतलाया है उस सबको अतिक्रम कर जाता है और आदिमें होनेवाले सबके कारणरूप परम श्रेष्ठ ऐश्वरपदको अर्थात् ब्रह्मको पा लेता है।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।8.28।। --,वेदेषु सम्यगधीतेषु यज्ञेषु च साद्गुण्येन अनुष्ठितेषु तपःसु च सुतप्तेषु दानेषु च सम्यग्दत्तेषु यद् एतेषु यत् पुण्यफलं प्रदिष्टं शास्त्रेण अत्येति अतीत्य गच्छति तत् सर्वं फलजातम् इदं विदित्वा सप्तप्रश्ननिर्णयद्वारेण उक्तम् अर्थं सम्यक् अवधार्य अनुष्ठाय योगी परम् उत्कृष्टम् ऐश्वरं स्थानम् उपैति च प्रतिपद्यते आद्यम् आदौ भवम् कारणं ब्रह्म इत्यर्थः।।इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य,श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ श्रीमद्भगवद्गीताभाष्ये

अष्टमोऽध्यायः।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।8.28।। योगी इसको (शुक्ल और कृष्णमार्गके रहस्यको) जानकर वेदोंमें, यज्ञोंमें, तपोंमें तथा दानमें जो-जो पुण्यफल कहे गये हैं, उन सभी पुण्यफलोंका अतिक्रमण कर जाता है और आदिस्थान परमात्माको प्राप्त हो जाता है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।8.28।। योगी पुरुष यह सब (दोनों मार्गों के तत्त्व को) जानकर वेदाध्ययन, यज्ञ, तप और दान करने में जो पुण्य फल कहा गया है, उस सबका उल्लंघन कर जाता है और आद्य (सनातन), परम स्थान को प्राप्त होता है।।