श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

श्री भगवानुवाच

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।

भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः।।8.3।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।8.3।।इन प्रश्नोंका क्रमसे निर्णय करनेके लिये श्रीभगवान् बोले --, परम अक्षर ब्रह्म है अर्थात् हे गार्गि इस अक्षरके शासनमें ही यह सूर्य और चन्द्रमा धारण किये हुए स्थित हैं इत्यादि श्रुतियोंसे जिसका वर्णन किया गया है जो कभी नष्ट नहीं होता वह परमात्मा ही ब्रह्म है। परम विशेषणसे युक्त होनेके कारण यहाँ अक्षर शब्दसे ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म इस वाक्यमें वर्णित ओंकारका ग्रहण नहीं किया गया है क्योंकि परम वह विशेषण निरतिशय अक्षर ब्रह्ममें ही अधिक सम्भव -- युक्ितयुक्त है। उसी परब्रह्मका जो प्रत्येक शरीरमें अन्तरात्मभाव है उसका नाम स्वभाव है वह स्वभाव ही अध्यात्म कहलाता है। अभिप्राय यह कि आत्मा यानी शरीरको आश्रय बनाकर जो अन्तरात्मभावसे उसमें रहनेवाला है और परिणाममें जो परमार्थ ब्रह्म ही है वही तत्त्व स्वभाव है उसे ही अध्यात्म कहते हैं अर्थात् वही अध्यात्म नामसे कहा जाता है। भूतभावउद्भवकर अर्थात् भूतोंकी सत्ता भूतभाव है। उसका उद्भव ( उत्पत्ति ) भूतभावोद्भव है उसको करनेवाला भूतभावोद्भवकर यानी भूतवस्तुको उत्पन्न करनेवाला ऐसा जो विसर्ग अर्थात् देवोंके उद्देश्यसे चरु पुरोडाश आदि ( हवन करने योग्य ) द्रव्योंका त्याग करना है वह त्यागरूप यज्ञ कर्म नामसे कहा जाता है इस बीजरूप यज्ञसे ही वृष्टि आदिके क्रमसे स्थावरजङ्गम समस्त भूतप्राणी उत्पन्न होते हैं।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।8.3।। -- अक्षरं न क्षरतीति अक्षरं परमात्मा एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गि (बृह0 उ0 3।8।9 इति श्रुतेः। ओंकारस्य च ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म (गीता 8।13) इति परेण विशेषणात् अग्रहणम्। परमम् इति च निरतिशये ब्रह्मणि अक्षरे उपपन्नतरम् विशेषणम्। तस्यैव परस्य ब्रह्मणः प्रतिदेहं प्रत्यगात्मभावः स्वभावः स्वो भावः स्वभावः अध्यात्मम् उच्यते। आत्मानं देहम् अधिकृत्य प्रत्यगात्मतया प्रवृत्तं परमार्थब्रह्मावसानं वस्तु स्वभावः अध्यात्मम् उच्यते अध्यात्मशब्देन अभिधीयते। भूतभावोद्भवकरः भूतानां भावः भूतभावः तस्य उद्भवः भूतभावोद्भवः तं करोतीति भूतभावोद्भवकरः भूतवस्तूत्पत्तिकर इत्यर्थः। विसर्गः विसर्जनं देवतोद्देशेन चरुपुरोडाशादेः द्रव्यस्य परित्यागः स एष विसर्गलक्षणो यज्ञः कर्मसंज्ञितः कर्मशब्दित इत्येतत्। एतस्मात् हि बीजभूतात् वृष्ट्यादिक्रमेण स्थावरजङ्गमानि भूतानि उद्भवन्ति।।

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।8.3।। श्रीभगवान् बोले -- परम अक्षर ब्रह्म है और जीवका अपना जो होनापन है, उसको अध्यात्म कहते हैं। प्राणियों का उद्भव (सत्ता को प्रकट) करनेवाला जो त्याग है उसको कर्म कहा जाता है।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।8.3।। श्रीभगवान् ने कहा -- परम अक्षर (अविनाशी) तत्त्व ब्रह्म है; स्वभाव (अपना स्वरूप) अध्यात्म कहा जाता है; भूतों के भावों को उत्पन्न करने वाला विसर्ग (यज्ञ, प्रेरक बल) कर्म नाम से जाना जाता है।।