देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.30।।
श्रीमद् भगवद्गीता
2.30 देही indweller, नित्यम् always, अवध्यः indestructible, अयम् this, देहे in the body, सर्वस्य of all, भारत O Bharata, तस्मात् therefore, सर्वाणि (for) all, भूतानि creatures, न not, त्वम् thou, शोचितुम् to grieve, अर्हसि (thou) shouldst.
Commentary:
The body of any creature may be destroyed but the Self cannot be killed. Therefore you should not grieve regarding any creature whatever, Bhishma or anybody else.
।।2.30।।अब यहाँ प्रकरणके विषयका उपसंहार करते हुए कहते हैं
यह जीवात्मा सर्वव्यापी होनेके कारण सबके स्थावरजंगम आदि शरीरोंमें स्थित है तो भी अवयवरहित और नित्य होनेके कारण सदा सब अवस्थाओंमें अवश्य ही है।
जिससे कि सम्पूर्ण प्राणियोंके शरीरोंका नाश किये जानेपर भी इस आत्माका नाश नहीं किया जा सकता इसलिये भीष्मादि सब प्राणियोंके उद्देश्यसे तुझे शोक करना उचित नहीं है।