कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।2.51।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।2.51।।क्योंकि
कर्मजम् इस पदका फलं त्यक्त्वा इस अगले पदसे सम्बन्ध है।
कर्मोंसे उत्पन्न होनेवाली जो इष्टानिष्टदेहप्राप्ति है वही कर्मज फल कहलाता है समत्वबुद्धियुक्त पुरुष उस कर्मफलको छोड़कर मनीषी अर्थात् ज्ञानी होकर जीवित अवस्थामें ही जन्मबन्धनसे निर्मुक्त होकर अर्थात् जन्म नामके बन्धनसे छूटकर विष्णुके मोक्ष नामक अनामय सर्वोपद्रवरहित परमपदको पा लेते हैं।
अथवा ( यों समझो कि ) बुद्धियोगाद्धनंजय इस श्लोकसे लेकर ( यहाँतक बुद्धि शब्दसे ) कर्मयोगजनित सत्त्वशुद्धिसे उत्पन्न हुई जो सर्वतःसंप्लुतोदकस्थानीय परमार्थज्ञानरूपा बुद्धि है वही दिखलायी गयी है क्योंकि ( यहाँ ) यह बुद्धि पुण्यपापके नाशमें साक्षात् हेतुरूपसे वर्णित है।