मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा।।10.34।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।10.34।।धनादिका नाश करनेवाला और प्राणोंका नाश करनेवाला ऐसे दो प्रकारका मृत्यु सर्वहर कहलाता है? वह सर्वहर मृत्यु मैं हूँ। अथवा परम ईश्वर प्रलयकालमें सबका नाश करनेवाला होनेसे सर्वहर है? वह मैं हूँ। भविष्यत्में जिनका कल्याण होनेवाला है अर्थात् जो उत्कर्षताप्राप्तिके योग्य हैं उनका उद्भव अर्थात् उत्कर्ष -- उन्नतिकी प्राप्तिका कारण मैं हूँ। स्त्रियोंमें जो कीर्ति? श्री? वाणी? स्मृति? बुद्धि? घृति और क्षमा ये उत्तम स्त्रियाँ हैं? जिनके आभासमात्र सम्बन्धसे भी लोग अपनेको कृतार्थ मानते हैं वे मैं हूँ।