श्रीमद् भगवद्गीता

मूल श्लोकः

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।

 

Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka

।।4.7।।वह जन्म कब और किसलिये होता है सो कहते हैं हे भारत वर्णाश्रम आदि जिसके लक्षण हैं एवं प्राणियोंकी उन्नति और परम कल्याणका जो साधन है उस धर्मकी जबजब हानि होती है और अधर्मका अभ्युत्थान अर्थात् उन्नति होती है तबतब ही मैं मायासे अपने स्वरूपको रचता हूँ।

Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya

।।4.7।। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः हानिः वर्णाश्रमादिलक्षणस्य प्राणिनामभ्युदयनिःश्रेयससाधनस्य भवति भारत अभ्युत्थानम् उद्भवः अधर्मस्य तदा तदा आत्मानं सृजामि अहं मायया।।किमर्थम्

Hindi Translation By Swami Ramsukhdas

।।4.7।। हे भरतवंशी अर्जुन! जब-जब धर्मकी हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने-आपको साकाररूपसे प्रकट करता हूँ।

Hindi Translation By Swami Tejomayananda

।।4.7।। हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है,  तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ।।