श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत्ित्रविधं नरैः।
अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते।।17.17।।
श्रीमद् भगवद्गीता
मूल श्लोकः
Sanskrit Commentary By Sri Shankaracharya
।।17.17।। --,श्रद्धया आस्तिक्यबुद्ध्या परया प्रकृष्टया तप्तम् अनुष्ठितं तपः तत् प्रकृतं त्रिविधं त्रिप्रकारं त्र्यधिष्ठानं नरैः अनुष्ठातृभिः अफलाकाङ्क्षिभिः फलाकाङ्क्षारहितैः युक्तैः समाहितैः यत् ईदृशं तपः? तत् सात्त्विकं सत्त्वनिर्वृत्तं परिचक्षते कथयन्ति शिष्टाः।।
Hindi Translation Of Sri Shankaracharya's Sanskrit Commentary By Sri Harikrishnadas Goenka
।।17.17।।उपर्युक्त कायिक? वाचिक और मानसिक तप मनुष्योंद्वारा किये जानेपर? सात्त्विक आदि भेदोंसे,तीन प्रकारके कैसे होते हैं सो बतलाते हैं --, जिसका प्रकरण चल रहा है वह? तीन प्रकारका कायिक? वाचिक और मानसिक तप? जो फलाकाङ्क्षारहित और समाहितचित्त पुरुषोंद्वारा उत्तम श्रद्धापूर्वक -- आस्तिकबुद्धिपूर्वक किया जाता है? ऐसे उस तपको श्रेष्ठ पुरुष सात्त्विक -- सत्त्वगुणजनित कहते हैं।